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लोग मुझे अपने होंठों से लगाए हुए हैं,

  लोग मुझे अपने होंठों से लगाए हुए हैं , मेरी शोहरत किसी के            नाम की मोहताज नहीं Attitude Shayari, log mujhe apane honthon  se lagae hue hain,  meree shoharat kisee ke  naam kee mohataaj nahin

घर से तो निकले थे हम

 "असरार-उल-हक़ मजाज़" एक प्रमुख उर्दू कविता है, जिसे मीर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) ने लिखा था। यह कविता उर्दू साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है और ग़ालिब की कला का प्रतीक है।

"असरार-उल-हक़ मजाज़" का अर्थ होता है "सच के राज़ और गुप्त संकेत"। इस कविता में ग़ालिब ने अपने जीवन, प्रेम, और दुखों के बारे में अपने भावनात्मक अनुभवों को व्यक्त किया है। यह कविता उनकी अद्वितीय भावनाओं और उर्दू भाषा के जादूमयी सौंदर्य को प्रकट करती है।

मीर्ज़ा ग़ालिब के कविता साहित्य में अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं, और उन्होंने उर्दू कविता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। "असरार-उल-हक़ मजाज़" उनके उत्कृष्ट और सुंदर रचनाओं में से एक है, जो आज भी पठन्तरों और अनुवादों के माध्यम से पढ़ी और प्रेम की जाती है।

असरार-उल-हक़ मजाज़" (Asrar-ul-Haq Majaz) भारतीय उर्दू भाषा के कवि और शाइर थे जिन्होंने अपने काव्य के माध्यम से सामाजिक और साहित्यिक विचारों का अभिव्यक्ति किया। उनका जन्म 19 اکتوبر 1911 को आलीगढ़, उत्तर प्रदेश, ब्रिटिश भारत में हुआ था, और उनका निधन 5 دسمبر 1955 को हुआ.

असरार-उल-हक़ मजाज़ का काव्य विशेष रूप से उर्दू अदाब के तथ्यों, सामाजिक मुद्दों, और व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित था। वे जाने जाते हैं क्योंकि "شاعر-مشرق" (Shaair-e-Mashriq) यानी "पूरबी कवि" के रूप में, जिन्होंने अपनी कविताओं में इस्लामिक संस्कृति, मोहब्बत (प्यार), और आजादी के मुद्दे पर काम किया।मजाज़ की कविताएँ और शायरी उर्दू साहित्य में महत्वपूर्ण हैं और उन्होंने अपनी कला के माध्यम से विचारशीलता और सहयोग की बढ़ती मांग को प्रकट किया। उन्होंने अपने समय के अग्रणी कवियों में से एक थे और उनका काव्य साहित्य की विशेष पहचान बन गया।

घर से तो निकले थे हम

       ख़ुशी की ही तलाश में,

       किस्मत ने ताउम्र का

          हमैं मुसाफिर बना दिया ।

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dard - shayari


 

 

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